Tuesday, 21 May 2019

बेहद करीबी शय मीलों के सफर सी होती है।

जब कभी तुम्हें
ज़िन्दगी ज़िंदा ना लगे
तो एक पल ठहर इसे पढ़ना।

कुछ दिनों से तुम
बेहद अस्त व्यस्त हो,
आंसुओं को तरल पदार्थ
के मानिंद निगल
रहे हो,
यकीनन ये सबसे
सरल काम है,
बेहद सरल।

पर सच कहूं तो
ये महज खुद से खुद की
दूरी है।

दूरी.. जितनी ख़ामोश जुबां और
उगलती आंखों के मध्य है।
दूरी उतनी जितनी
मुसलसल गिरते आंसुओं
और अंखियों के कोनों
तक रेंगते आए पानी के बीच है।
हां,ठीक उतनी ही दूरी
जितनी सच्चे प्रेमियों के
रूठने और मान जाने के बीच है।

सिर्फ इतनी सी ही दूरी
तय करनी है तुम्हें,
पर जानती हूं कि ये आसान नहीं।

क्योंकि अक्सर बेहद करीबी शय
मीलों के सफर सी होती है।

Friday, 5 April 2019

सच और झूठ

सच है सफर।
झूठ है मंजिलें।

सच है ज्ञानी।
झूठ है सर्वज्ञानी।

सच है नदियां।
झूठ है तालाब।

सच है नजर।
झूठ है आंखें।

सच है मृत्यु।
झूठ है बाकी सब।

Wednesday, 3 April 2019

कितना मैला हो गया है आदमी..

कंटीले झाड़ झाखड़ से
छलनी होताआदमी,
नदी की तेज धाराओं से
मचलता सा आदमी,
मेघों की गर्जन सुन
भीतर तक कांपता आदमी,
बादलों सा सफेद अंतस पाकर भी
कितना मैला हो गया है आदमी।

मंदिरों में मूर्ति देख
पूजा अर्चना करता आदमी,
हीरे की खदानों में
सोने को तलाशता आदमी,
सुकून को आदिमानव मान
आंसुओं से खुश होता आदमी, 
बादलों सा सफेद अंतस पाकर भी
कितना मैला हो गया है आदमी।

Wednesday, 27 February 2019

कुछ वक़्त के लिए अचेत होना चाहती हूं।

अजान ही
आशंकित हूं
भयभीत हूं
कुछ वक़्त के लिए
अचेत होना चाहती हूं।

मैं यहां बैठ सुन सकती हूं..
मेरे कान फट रहे हैं
बम की आवाज़ से
आवेश से भरी नारेबाजी से
सच, मैं अचेत होना चाहती हूं
उस चीख-चीत्कार से पहले।

मैं यहां बैठ देख पा रही हूं..
अपना मकान छोड़ भागते
वितृष्णा से भरे चेहरे,
सुन्न सा भाव लिए
वो बूढ़े काका,
न जाने क्या कौंधा
उनके भीतर
घर की चौखट को चूम
टेक आएं हैं माथा।

मेरे भीतर धुकधुकी हो उठी है
नहीं, मैं किसी की पक्षधर नहीं
न ही कोई पंथी हूं
अजान, अबूझ सी
आशंकित हूं
भयभीत हूं।

Thursday, 14 February 2019

प्रेम

प्रेम।
मैं अक्सर एक असफल कोशिश
करती हूं
प्रेम को शब्दों में बांधने की।

कितनी बुद्धू हूं न..
समझ ही नहीं पाती
कि भला हवा को कैसे
बांधा जा सकता है।

पर...
प्रेम कभी सफल
यां असफल नहीं हो सकता,
यह हवा सा हमारे
इर्द गिर्द मौजूद ही रहता है।

उसका नाम कानों तक पहुंचते ही
धड़कनों का लजाना,
किवाड़ों की आड़ ले उसे निहारना,
उसके कदमों की आहट सुनते ही
जुल्फों को बिखराना,
और उसके सामने आते ही
अल्फाजों का गुम जाना,
प्रेम ही है।

प्रेम की नामौजूदगी में....
उसकी आवाज को सुन पाना
हर पल में उसका ख्याल होना
बीते वक्त की याद से
आंसुओं का ढुलक आना
और फिर मुस्कुरा कर
आंसुओं को अपनाना,
प्यार ही तो है।

Monday, 14 January 2019

भीतर ही भीतर।

कुछ है.....
जो मुझे बेचैन कर रहा है
भीतर ही भीतर।

कुछ है.....
जो चाहता है पुकार लगाना
करना चाहता है ध्वनित हरेक अक्षर
विशाल समुद्र सा रहता है
वो मेरे ही भीतर।

इसका मौन रहना
मुझे पसंद नहीं,
न ही पसंद
इसका उफान,
कौन है ये
कैसी असल प्रकृति इसकी
हूं अब तलक अनजान।

पर यकीनन कुछ है.....
जो मुझे बेचैन कर रहा है
भीतर ही भीतर।

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...