Thursday, 23 August 2018

मैं वो कहानी बनना चाहती हूं।

नहीं लिखनी मुझे कोई कविता
न ग़ज़ल लिखना चाहती हूं,
जिसे सुन तू सुकूं से सो सके
मैं वो कहानी बनना चाहती हूं।

बनना चाहती हूं रेशमी धागा
जो तेरे टूटे ख्वाबों, उधड़े जज्बातों
को सिल सके,
यां बन जाऊं वो तकिया
जिसे कसकर पकड़
तू बेझिझक रो सके।

बनना चाहती हूं वो एकांत
जहां बैठ तू खुद से गुफ्तगू कर सके,
यां बन जाऊं वो महफ़िल
जहां तेरा हर दर्द शून्य हो सके।

नहीं बनना चंदन,
न रोली बनना चाहती हूं,
जहां बांधे तू मन्नती धागे
मैं मंदिर-मस्जिद की वो मीनार बनना चाहती हूं।।

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