प्रेम।
मैं अक्सर एक असफल कोशिश
करती हूं
प्रेम को शब्दों में बांधने की।
कितनी बुद्धू हूं न..
समझ ही नहीं पाती
कि भला हवा को कैसे
बांधा जा सकता है।
पर...
प्रेम कभी सफल
यां असफल नहीं हो सकता,
यह हवा सा हमारे
इर्द गिर्द मौजूद ही रहता है।
उसका नाम कानों तक पहुंचते ही
धड़कनों का लजाना,
किवाड़ों की आड़ ले उसे निहारना,
उसके कदमों की आहट सुनते ही
जुल्फों को बिखराना,
और उसके सामने आते ही
अल्फाजों का गुम जाना,
प्रेम ही है।
प्रेम की नामौजूदगी में....
उसकी आवाज को सुन पाना
हर पल में उसका ख्याल होना
बीते वक्त की याद से
आंसुओं का ढुलक आना
और फिर मुस्कुरा कर
आंसुओं को अपनाना,
प्यार ही तो है।
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