Monday, 1 January 2024

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है
साल बदला है
पर बदला है
तुम्हारा मन क्या?


है जश्न चारों ओर
उमंग का न बूझे छोर
पर क्या खोज पाए हो
अपने मन की डोर?


फैला है चहुँओर उजास
चांद भी लग रहा है पास
पर कहां छुपा है
तुम्हारा आकाश?


है जो चोट, दर्द, ग्लानि,
ईर्ष्या व बेबसी,
ले यह भारी गठरी 
गुजारोगे आखिर कितनी ही सदी।


साल बदलना सहज है
अब क्यू मन को टटोलना होगा
असल उल्लास समझोगे तभी
जब कस्तूरी मृग से मिलना होगा।

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