Tuesday, 3 April 2018

मैंने अपने छोटे कस्बे में, मैला कश्मीर देखा है।

मैंने अपने छोटे कस्बे में
कल, मैले कश्मीर को देखा है..
उसकी खूबसूरती से परे
पसरा खौफ देखा है।

लाठियों को बरसते देखा है,
इंसानियत को तरसते देखा है,
सरेआम.. बेखौफ
खौफ के बीज को पनपते देखा है..
मैंने अपने छोटे कस्बे में
कल,मैले कश्मीर को देखा है।

फूलों की दुकान पर
कांच के टुकड़ों को सजते देखा है,
गाड़ी के पहिए हो यां हो इंसानी नब्ज
दोनों को एक ही तराजू में तुलते देखा है..
मैंने अपने छोटे कस्बे में
कल, मैले कश्मीर को देखा है।

मैंने अपनी चीख का दम घुटते देखा है
डर को आंसुओं में ढलते देखा है।

रास्तें सुनसान... शक्लें परेशान,
रंगबिरंगे बाज़ार में
बदरंग चादर को बिकते देखा है
अफसोस...मैंने अपने छोटे कस्बे में
कल, मैले कश्मीर को देखा है।

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