Thursday, 30 August 2018

ऐसी एक यात्रा पर मुझे जाना है...

जज़्ब किया है जो सदियों से भीतर 
उसे किसी नदी में उछालना है 
ऐसी एक यात्रा पर मुझे जाना है। 

देखना है मुझे...
पहाड़...पहाड़ से ऊंचा पर्वत 
नदी...नदी की तेज़ धाराओं की करवट।
चट्टानें...चट्टानों में उभरी आकृतियां 
रेत के टीले...टीलों में छुपी सीपियाँ। 

जंगल...जंगलों का शाश्वत डर 
पंछी...पंछियों के पल दो पल के घर। 
झरने...झरनों का प्यारा शोर 
ऊंची ट्रॉली...ट्रॉलियों की मजबूत डोर। 

अनजाने लोग...लोगों की पोशाक, उनकी भाषा 
मंदिर मस्जिद...जहाँ खोज पाऊं ईश्वर की नई परिभाषा। 
खाली मैदान...उन मैदानों में मुझे एक पुकार लगाना है 
ऐसी एक यात्रा पर मुझे जाना है।         

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बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...