शिव ने चुना गृहस्थ जीवन
बुद्ध ने त्याग दिया
परन्तु दोनों ही निर्विकार हुए
क्योंकि अपने मन को आकार दिया।
त्याग एक साध्य है
गृहस्थ एक साधना है
सब मन का खेल है
मन की ही आराधना है।
वरन मन की थाह बड़ी दुर्गम है,
लोभ, मोह, माया का वृहत ये संगम है,
पर ढूंढने दें इसे अपना रास्ता
इसे ना दें किसी का वास्ता।
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