Wednesday, 29 June 2022

देश एक भट्टी है

इंसान और इंसानियत की 

चल रही कट्टी है, 

साहिब, देश एक भट्टी है। 


अब चोखा अलग 

अलग लिट्टी है, 

ना कहो कि  

सबकी एक ही मिट्टी है 

साहिब, देश एक भट्टी है। 


आज प्रत्यक्ष है 

कल आशंकित है, 

भयभीत नजारों में भी 

उम्मीद लिए  बैठा 

कम्बख्त ये मन हठी है  

साहिब, देश एक भट्टी है। 



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