इंसान और इंसानियत की
चल रही कट्टी है,
साहिब, देश एक भट्टी है।
अब चोखा अलग
अलग लिट्टी है,
ना कहो कि
सबकी एक ही मिट्टी है
साहिब, देश एक भट्टी है।
आज प्रत्यक्ष है
कल आशंकित है,
भयभीत नजारों में भी
उम्मीद लिए बैठा
कम्बख्त ये मन हठी है
साहिब, देश एक भट्टी है।