Wednesday, 29 June 2022

देश एक भट्टी है

इंसान और इंसानियत की 

चल रही कट्टी है, 

साहिब, देश एक भट्टी है। 


अब चोखा अलग 

अलग लिट्टी है, 

ना कहो कि  

सबकी एक ही मिट्टी है 

साहिब, देश एक भट्टी है। 


आज प्रत्यक्ष है 

कल आशंकित है, 

भयभीत नजारों में भी 

उम्मीद लिए  बैठा 

कम्बख्त ये मन हठी है  

साहिब, देश एक भट्टी है। 



Sunday, 19 June 2022

पिता डरता है

मजबूत होती हैं माएं
पिता तो नाजुक सा होता है 
वो खुलकर रो लेती है 
पिता रोने से भी डरता है। 

स्वेटर बुनती मां है 
पिता ऊन लाता है
वो आम की फांके बांटती है 
पिता आम की मिठास ढूंढ लाता है। 

प्रेम की परिभाषा मां के हिस्से 
पिता का क्रोध जाना जाता है 
वो दुनिया की खूबसूरती सिखलाती है
पिता दुनिया से ही डरता है।

मां अपनी हर उम्र में
एक सी होती है
पर पिता जरूर बदलता है,
जवानी में कठोर
तो बुढ़ापे में नरम सा होने लगता है। 

यूं सोचो कि पिता तो आदमी है
फिर भला किससे डरता है!
अंदर की बात ये है कि पिता भी
एक आदमी से ही डरता है। 

































बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...