Friday, 5 April 2019

सच और झूठ

सच है सफर।
झूठ है मंजिलें।

सच है ज्ञानी।
झूठ है सर्वज्ञानी।

सच है नदियां।
झूठ है तालाब।

सच है नजर।
झूठ है आंखें।

सच है मृत्यु।
झूठ है बाकी सब।

Wednesday, 3 April 2019

कितना मैला हो गया है आदमी..

कंटीले झाड़ झाखड़ से
छलनी होताआदमी,
नदी की तेज धाराओं से
मचलता सा आदमी,
मेघों की गर्जन सुन
भीतर तक कांपता आदमी,
बादलों सा सफेद अंतस पाकर भी
कितना मैला हो गया है आदमी।

मंदिरों में मूर्ति देख
पूजा अर्चना करता आदमी,
हीरे की खदानों में
सोने को तलाशता आदमी,
सुकून को आदिमानव मान
आंसुओं से खुश होता आदमी, 
बादलों सा सफेद अंतस पाकर भी
कितना मैला हो गया है आदमी।

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...