Sunday, 29 October 2017

कुछ गुजरा अभी..... जाना पहचाना सा लगा...






कुछ गुजरा अभी..... 
जाना पहचाना सा लगा... 
महक भी वही थी.. 
खनक भी वही थी..
जाने के बाद की
मायूसी भी वही थी...
शायद कोई पुराना किस्सा था,
यां मेरा ही कोई हिस्सा था..... 

सोचा रोक लूँ उसे... 
जो सवाल उस वक़्त 
नहीं पूछ सकी,
आज मांग लूँ
वो जवाब सारे...
पर चले जाने दिया उसे...
रोक लिया मैंने 
वही दर्द , वही मायूसी।  

No comments:

Post a Comment

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...