हँसते खेलते ये साल भी गुज़र गया,
तारीखों का सिला यादों में ढल गया,
कोई कहेगा कि ये साल रफ़्तार पकड़ गया,
पर मैं कहूँगी कि अनुभवों में इज़ाफ़ा कर गया।
उम्मीदों का थैला भर यहाँ दाखिल हुए,
अधूरी नज्मों को एक मुकाम देने की चाह लिए,
इरादा था कि, जहाँ तक नजर जाए, वहां तक समेट लूं,
मुट्ठियाँ तो भर गईं, पर इन ख्वाहिशों को क्या जवाब दूँ।
थोड़ा सा उजाला चुरा, कहीं और बिखेरने की हसरत भी थी,
अपनी गुल्लक को मटमैली बस्ती में फोड़ने की जरूरत भी थी,
उम्मीदें थीं, आशाएं थीं, संग संग जंजीरें भी थीं,
पर आज एक कदम आगे और बीते कल एक कदम मैं पीछे भी थी।
ऐसा नहीं कहूँगी कि मैं पंख संजोती रही,
और साल उड़ चला गया,
पर हाँ, काफी कुछ है, जो बाकी रह गया।
चलिए, इस साल से विदा ले, नई तारीखों को रचते हैं,
शिद्दत और सब्र के साथ इक नई कहानी लिखते हैं,
इक नई रूमानी लिखते हैं।।