Thursday, 5 February 2015

हार

 तू हँस कि हार शरमा जाए,
यूँ उदास न बैठ कि वो तेरे दर पर ही रुक जाए।

लोग ज़िन्दगी में न जाने क्या-क्या हारते हैं,
याद रख, वो दूसरे  रोज ही नया मुकाम पाते हैं।

 बता! किससे डर है तुझे,
ये हार तो नहीं हो सकती!!
लाख गैरों की कमतर नज़रें,
अपनो के प्यार का यूँ तमाशा तो नहीं बना सकतीं।

तेरे आंसुओं का सैलाब देखकर
आज खुदा भी हैरान है,
सोच रहा है कल से,
क्या मेरी बनाई चीज़ इतनी नादान है!!

उठ!, आंसुओं को यूँ बर्बाद न कर,
खुशकिस्मती हार का यूँ ओहदा कम न कर,
भीगीं पलकों से तो अपना चेहरा भी धुंधला नज़र आएगा,
 कड़ी मेहनत से अपनी नज़र उतार
कि एक दिन हर कोई तेरा ही किस्सा सुनाएगा।

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बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...