ट्रिंग-ट्रिंग की आवाज़ सुन,
मैंने उठाया फ़ोन,
हैलो के बाद पूछा-
'जी आप कौन?'
आवाज़ आई-
'राकेश है, राकेश?'
मैंने कहा-जी रॉंग नंबर है,
वो बोला- जी आप कौन हैं?
मैंने कहा जिस व्यक्ति से आप बात करना चाहते हैं,
वे यहाँ मौजूद नहीं हैं,
वो फिर बोल पड़ा,
'जी आप कौन बोल रही हैं?'
झुंझलाहट में मैंने रख दिया फ़ोन,
वो कहता ही रहा,
'जी आप कौन, जी आप कौन ?'
अब घरवालों की बारी थी,
इस रॉंग नंबर के बाद की तैयारी थी।
तीन सदस्य मौजूद थे घर में,
तीनों ने ही पूछा-'किसका फ़ोन था?',
मैंने कहा- 'रॉंग नंबर था',
पर जिज्ञासु मन कहाँ शांत बैठता,
बोले-'किसके लिए पूछ रहा था?',
मैंने कहा किसी राकेश के लिए फ़ोन था,
जवाब मिला- 'राकेश नहीं, नरेश कहा होगा',
उन तीन के आगे मैं हुई अल्पसंखयक,
कहा-'हो सकता है, मैंने गलत सुना होगा।'
इतने में ही फिर ट्रिंग-ट्रिंग बोल पड़ा,
मेरा मन अब जिद पर आ अड़ा,
नहीं उठाऊंगी फ़ोन,
साला, फिर पूछेगा कि आप कौन।
पर जिद को छोड़,उठाया फोन,
उन्हीं महाशय की आवाज़ आई,
कहने लगे- 'आप कौन?'
मैंने गुस्से में भी व्यवहार-कुशलता को बनाए रखा,
'तू' नहीं , 'आप' का ही दौर जारी रखा,
कहा- 'आपने लगाया है ना फोन,
और मैं बताऊँ आपको कि मैं हूँ कौन।'
वो शांतस्वर में बोला- 'मैडम मैं वही तो आपको बताना चाहता हूँ,
राकेश का मित्र हूँ, और उसी से बात करना चाहता हूँ',
मैंने क्रोधित हुए कहा-आप पृथ्वी से तो नहीं हो सकते,
आखिर किस ग्रह के प्राणी हैं,
जवाब मिला- जी हम सिर्फ और सिर्फ राकेश के सानी हैं।
मैं कुछ कहती ही कि वो खुशस्वर में बोल पड़ा,
'अरे अरे मैडम, राकेश तो यहीं आकर है खड़ा।'
मैंने कहा-जी बधाई हो आपको,
अब आगे से फ़ोन मत कीजिएगा,
वो बोला- मैडम वचन तो नहीं दे सकता,
'माफ़ कीजिएगा।'
मैंने उठाया फ़ोन,
हैलो के बाद पूछा-
'जी आप कौन?'
आवाज़ आई-
'राकेश है, राकेश?'
मैंने कहा-जी रॉंग नंबर है,
वो बोला- जी आप कौन हैं?
मैंने कहा जिस व्यक्ति से आप बात करना चाहते हैं,
वे यहाँ मौजूद नहीं हैं,
वो फिर बोल पड़ा,
'जी आप कौन बोल रही हैं?'
झुंझलाहट में मैंने रख दिया फ़ोन,
वो कहता ही रहा,
'जी आप कौन, जी आप कौन ?'
अब घरवालों की बारी थी,
इस रॉंग नंबर के बाद की तैयारी थी।
तीन सदस्य मौजूद थे घर में,
तीनों ने ही पूछा-'किसका फ़ोन था?',
मैंने कहा- 'रॉंग नंबर था',
पर जिज्ञासु मन कहाँ शांत बैठता,
बोले-'किसके लिए पूछ रहा था?',
मैंने कहा किसी राकेश के लिए फ़ोन था,
जवाब मिला- 'राकेश नहीं, नरेश कहा होगा',
उन तीन के आगे मैं हुई अल्पसंखयक,
कहा-'हो सकता है, मैंने गलत सुना होगा।'
इतने में ही फिर ट्रिंग-ट्रिंग बोल पड़ा,
मेरा मन अब जिद पर आ अड़ा,
नहीं उठाऊंगी फ़ोन,
साला, फिर पूछेगा कि आप कौन।
पर जिद को छोड़,उठाया फोन,
उन्हीं महाशय की आवाज़ आई,
कहने लगे- 'आप कौन?'
मैंने गुस्से में भी व्यवहार-कुशलता को बनाए रखा,
'तू' नहीं , 'आप' का ही दौर जारी रखा,
कहा- 'आपने लगाया है ना फोन,
और मैं बताऊँ आपको कि मैं हूँ कौन।'
वो शांतस्वर में बोला- 'मैडम मैं वही तो आपको बताना चाहता हूँ,
राकेश का मित्र हूँ, और उसी से बात करना चाहता हूँ',
मैंने क्रोधित हुए कहा-आप पृथ्वी से तो नहीं हो सकते,
आखिर किस ग्रह के प्राणी हैं,
जवाब मिला- जी हम सिर्फ और सिर्फ राकेश के सानी हैं।
मैं कुछ कहती ही कि वो खुशस्वर में बोल पड़ा,
'अरे अरे मैडम, राकेश तो यहीं आकर है खड़ा।'
मैंने कहा-जी बधाई हो आपको,
अब आगे से फ़ोन मत कीजिएगा,
वो बोला- मैडम वचन तो नहीं दे सकता,
'माफ़ कीजिएगा।'