Sunday, 23 April 2023

सहसा गए लोग

 (*सहसा = अचानक)


सहसा गए लोग 

दरअसल कभी नहीं जाते। 


वो लौटते हैं 

वो कईं बार लौटते हैं 

छोटी छोटी बातों में 

बड़ी लम्बी सी रातों में। 


वो लौटते हैं साधारण सी 

रोजाना की जरूरतों में,

वो लौटते हैं 

कमरों में

लट्टे लिबासों में

पकवानों के स्वाद में 

मिलते जुलते कद काठी इंसानों में,

अबूझे अहसासों में 

वो लौटते हैं 

ईश्वर से नाराज़गी के रूप में भी,

और वो छिपे रहते हैं 

हँसती आँखों  के ठीक पीछे।


ईश्वर को खत्म कर देनी चाहिए 

ये सहसा वाली अपनी निष्ठुर हरकतें 

क्योंकि ये इंसानी दिल 

'सहसा' हुई रुख़सियतें नहीं झेल पाता। 

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...