Friday, 2 December 2022

कामकाजी स्त्रियां

स्त्रियां बड़ी शिद्दत से
घर बटोर ले जाया करती हैं किताबें
कि फुर्सत मिलते ही झट पढ़ लेंगी।
पर हर दफे बिना पन्ने पलटाए
ले आती हैं उन्हें वापस। कमोबेश उनका फुर्सत पाना भी
फुर्सत पाना नहीं होता।


फुर्सत में वो करती हैं
बहुतरे अंडररेटेड काम।
मसालेदानी में भरने लगती हैं
नमक और हल्दी,
फ्रीज में ढूंढने लगती हैं
परसों गिरी सब्जी के दाग,
पुरानी अखबारों के लिए ढूंढती हैं
एक नई जगह,
सर्द कपड़ों के लिए
छानती हैं पुरानी जगहें
और दसों कामों की फेहरिस्त लिए
घूमती हैं हॉल और किचन के भीतर बाहर।
दरअसल,
स्त्रियां किताबें खोलने से पहले
सिमट जाती हैं घर परिवार में।

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...