Friday, 2 December 2022

कामकाजी स्त्रियां

स्त्रियां बड़ी शिद्दत से
घर बटोर ले जाया करती हैं किताबें
कि फुर्सत मिलते ही झट पढ़ लेंगी।
पर हर दफे बिना पन्ने पलटाए
ले आती हैं उन्हें वापस। कमोबेश उनका फुर्सत पाना भी
फुर्सत पाना नहीं होता।


फुर्सत में वो करती हैं
बहुतरे अंडररेटेड काम।
मसालेदानी में भरने लगती हैं
नमक और हल्दी,
फ्रीज में ढूंढने लगती हैं
परसों गिरी सब्जी के दाग,
पुरानी अखबारों के लिए ढूंढती हैं
एक नई जगह,
सर्द कपड़ों के लिए
छानती हैं पुरानी जगहें
और दसों कामों की फेहरिस्त लिए
घूमती हैं हॉल और किचन के भीतर बाहर।
दरअसल,
स्त्रियां किताबें खोलने से पहले
सिमट जाती हैं घर परिवार में।

Tuesday, 22 November 2022

मैं एक प्राइवेट कर्मचारी हूँ

 मेज से घूरती  धूल 

बिस्तर के छोरों से लटकती चदर 

फ्रिज के ऊपर रखी पिरामिडनुमा दवा बोतलें 

अलमारी के अंदर मचा घमासान 

ग़ुसलख़ाने की नाली पर आंदोलनरत केश 

मैले कपड़ों के पुलिंदे 

पानी को तरसते नन्हे पौधे 

गैस के चूल्हे पर जमा एक गैर जिद्दी दाग 

खाली नमक के डिब्बे के पास रखी भरी नमक की थैली 

दही हांडी वाले दृश्य जैसा डस्टबिन 

और अथक चेहरा 

मुझे पल पल एहसास दिलाता है कि 

मैं एक प्राइवेट कर्मचारी हूँ। 

Saturday, 24 September 2022

सुनो ! नौकरी करने वालों।

नौकरी उर्फ़ जॉब करने वालों, सुनो।

कुछ बातें तुम्हें कोई नहीं बताएगा

इसलिए तनिक ध्यान से सुनो।


किसी की रिकमेन्डेशन के बदले 

नौकरी खुद हासिल करना, 

क्योंकि अगर वो संस्था के अंदर हुआ 

तो अहसान तले दबे रहोगे।


तनख्वाह अपनी 

काबिलियत के हिसाब से पाना 

क्योंकि ज्यादा में घिसे जाओगे 

और कम में पिसे जाओगे। 


गर सीधे सादे हो तो 

थोड़ी चालाकियां सीख लेना, 

आँख कान खुले रखना, 

और नौकरी कितनी भी अच्छी हो 

स्वयं को निखारते रहना।


और अंत में यह....  

नौकरी बचाने की जगह 

अपनी आवाज़ बचाये रखना

क्योंकि आवाज़ ही वजूद है। 

Sunday, 4 September 2022

शिक्षक

अंडररेटेड काम

ओवररेटेड सम्मान 

कुछ और कर पाने में रहे नाकाम

इसलिए बन गए

शिक्षक राम 

यही लगता है न तुम्हें?


तो सुनो,

ये शिक्षक ही 

ओवररेटेड जॉब्स  का 

आधार है,

सबको समान समझा जाए 

इसका पैरोकार है,

इसकी गरिमा समझना 

इतना ना आसान है,

सिर्फ शिक्षक दिवस को ही जान पाओगे 

कि हरेक शिक्षक कितना महान है। 

Thursday, 25 August 2022

दर्द फौरी नहीं होता

 

रेलमपेल सी दुनिया में 

ठहराव नहीं होता

बारिश के बूँद सा गुम जाए 

दर्द इतना फौरी नहीं होता।


ये कुछ दिन मचलता है 

कुछ दिन दहकता है 

फिर जमकर बरसता है, 

पर दोस्त

ये किस्सा बरस जाने पर ही खत्म नहीं होता,

क्यूंकि दर्द इतना फौरी नहीं होता।


शांत समुद्र सा दिखे कुछ दिन 

फिर उद्वेलित सा 

फिर थमा सा 

और फिर रिसता रिसता 

गहरी पैठ पा जाता है, 

दरअसल दर्द जैसी शय का मुकाम 

इतना सस्ता नहीं होता 

दोस्त, दर्द फौरी नहीं होता।


जो तुम कहो कि 

दर्द की समय सीमा 

भी होनी चाहिए,

तो दोस्त 

घड़ी का कांटा और दर्द 

मित्रवत नहीं होता

और

गर तुम सोचो कि आंसुओं से 

तर होकर बाहर निकल आओगे 

तो जनाब फिर सुनो 

दर्द इतना फौरी नहीं होता।


Wednesday, 29 June 2022

देश एक भट्टी है

इंसान और इंसानियत की 

चल रही कट्टी है, 

साहिब, देश एक भट्टी है। 


अब चोखा अलग 

अलग लिट्टी है, 

ना कहो कि  

सबकी एक ही मिट्टी है 

साहिब, देश एक भट्टी है। 


आज प्रत्यक्ष है 

कल आशंकित है, 

भयभीत नजारों में भी 

उम्मीद लिए  बैठा 

कम्बख्त ये मन हठी है  

साहिब, देश एक भट्टी है। 



Sunday, 19 June 2022

पिता डरता है

मजबूत होती हैं माएं
पिता तो नाजुक सा होता है 
वो खुलकर रो लेती है 
पिता रोने से भी डरता है। 

स्वेटर बुनती मां है 
पिता ऊन लाता है
वो आम की फांके बांटती है 
पिता आम की मिठास ढूंढ लाता है। 

प्रेम की परिभाषा मां के हिस्से 
पिता का क्रोध जाना जाता है 
वो दुनिया की खूबसूरती सिखलाती है
पिता दुनिया से ही डरता है।

मां अपनी हर उम्र में
एक सी होती है
पर पिता जरूर बदलता है,
जवानी में कठोर
तो बुढ़ापे में नरम सा होने लगता है। 

यूं सोचो कि पिता तो आदमी है
फिर भला किससे डरता है!
अंदर की बात ये है कि पिता भी
एक आदमी से ही डरता है। 

































बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...