Wednesday, 10 February 2021

लम्हें

वक़्त के जिस्म में
बहुत सारे लम्हें 

आत्मा बन रहा करते हैं.

जो कभी कोई
तुमसे कहे ना 
कि भूल जाओ गुज़रे वक़्त को 
तो बताना कि
क्या तालुक्क है
जिस्म और आत्मा के बीच.

चेताना कि अगली बार
जरा एहतियात बरते
जिस्म से आत्मा को शून्य
करने की बात कह्ने से पह्ले.

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...