Friday, 4 May 2018

कहाँ कुछ मेरा है..सबकुछ तो तेरा है।

खुदा के सजदे....

कहाँ कुछ मेरा है..सबकुछ तो तेरा है...
सोच भी तेरी, कलम भी तेरी
फिर क्यों लोग करते वाहवाही मेरी।

झूठ भी तेरा,  सच्चाई भी तेरी
फिर क्यों इस दुनिया में जवाबदारी मेरी।

राह भी तेरी, चाह भी तेरी
फिर कैसे कहूं कि वो मंजिल मेरी।

पागलपन भी तेरा, सयानापन भी तेरा
फिर कैसे कोई नादानी मेरी।

हाथ की लकीरें भी तेरी,
दर दर की ठोकरें भी तेरी
फिर कैसे कहूं कि मैं हूं मेरी।

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...