क्यों टूटते हैं वादे..
वो चमकीले वादे
वो सजीले वादे
कुछ उलझे से, कुछ बेहद सादे।
वो खूबसूरत रंग से
वो मदमस्त मलंग से
कुछ याद से, कुछ भूले- बिसरे से।
वो वादे थे...
मजबूत पुल से,
गुलशन में खिले गुल से।
पर ये कैसा मजबूत पुल
जो बारिश से ही थरथरा गया,
कैसा था ये गुलशन
जो नाजुक हवा के झोंके से
पूरा ही उजड़ गया।
टूट गए वो वादे,
शायद थे वो कच्चे मकान से
बेढंग सुराही से
होश में डूबी लापरवाही से....।
पर फिर भी...
क्यों टूटते हैं वादे!!!