Friday, 20 April 2018

क्यों टूटते हैं वादे!

क्यों टूटते हैं वादे..
वो चमकीले वादे
वो सजीले वादे
कुछ उलझे से, कुछ बेहद सादे।

वो खूबसूरत रंग से
वो मदमस्त मलंग से
कुछ याद से, कुछ भूले- बिसरे से।

वो वादे थे...
मजबूत पुल से,
गुलशन में खिले गुल से।
पर ये कैसा मजबूत पुल
जो बारिश से ही थरथरा गया,
कैसा था ये गुलशन
जो नाजुक हवा के झोंके से
पूरा ही उजड़ गया।

टूट गए वो वादे,
शायद थे वो कच्चे मकान से
बेढंग सुराही से
होश में डूबी लापरवाही से....।

पर फिर भी...
क्यों टूटते हैं वादे!!!

Tuesday, 3 April 2018

मैंने अपने छोटे कस्बे में, मैला कश्मीर देखा है।

मैंने अपने छोटे कस्बे में
कल, मैले कश्मीर को देखा है..
उसकी खूबसूरती से परे
पसरा खौफ देखा है।

लाठियों को बरसते देखा है,
इंसानियत को तरसते देखा है,
सरेआम.. बेखौफ
खौफ के बीज को पनपते देखा है..
मैंने अपने छोटे कस्बे में
कल,मैले कश्मीर को देखा है।

फूलों की दुकान पर
कांच के टुकड़ों को सजते देखा है,
गाड़ी के पहिए हो यां हो इंसानी नब्ज
दोनों को एक ही तराजू में तुलते देखा है..
मैंने अपने छोटे कस्बे में
कल, मैले कश्मीर को देखा है।

मैंने अपनी चीख का दम घुटते देखा है
डर को आंसुओं में ढलते देखा है।

रास्तें सुनसान... शक्लें परेशान,
रंगबिरंगे बाज़ार में
बदरंग चादर को बिकते देखा है
अफसोस...मैंने अपने छोटे कस्बे में
कल, मैले कश्मीर को देखा है।

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...