एक शहर ऐसा भी जो अक्सर वीरान रहता है
सबको महफूज़ कर
खुद सुनसान रहता है।
गली-नुक्कड़ों पर
भीड़भाड़ वाले चौराहों पर
अक्सर थम-सा जाता है
ये मोहब्बत है
या तोहफे में मिली खलिश
सिर्फ वही जानता है...
चलता है , भागता है
जंजीरों में जकड़ा-सा
कभी-कभी रेंगता है
दर्द-ए-महक का कहीं
किसे इल्म न हो जाए,
इत्र छिड़क घूमता है.....
एक शहर ऐसा भी
जो अक्सर वीरान रहता है....