Friday, 10 November 2017

एक शहर ऐसा भी जो अक्सर वीरान रहता है।


एक शहर ऐसा भी जो अक्सर वीरान रहता है
सबको महफूज़ कर
खुद सुनसान रहता है।

गली-नुक्कड़ों पर
भीड़भाड़ वाले चौराहों पर
अक्सर थम-सा जाता है
ये मोहब्बत है 
या तोहफे में मिली खलिश
सिर्फ वही जानता है...

चलता है , भागता है
जंजीरों में जकड़ा-सा
कभी-कभी रेंगता है
दर्द-ए-महक का कहीं
किसे इल्म न हो जाए,
इत्र छिड़क घूमता है.....

एक शहर ऐसा भी
जो अक्सर वीरान रहता है.... 



बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...