कोई जख्म नहीं, कोई घाव नहीं,
फिर भी मलहम की फ़िराक में हूँ,
कोई निंदक नहीं, कोई दुश्मन नहीं,
फिर भी एक कवच की तलाश में हूँ।
कोई लेनदार नहीं, कोई देनदार नहीं,
फिर भी हिसाब रखने की आदत में हूँ,
कोई अधूरी ख्वाहिश नहीं,
कोई छोटी-सी भी फरमाइश नहीं,
फिर भी खुदा की इबादत में हूँ।
कोई बेबसी नहीं, कोई दौड़-भाग नहीं,
फिर भी घड़ी-भर सुकून की चाह में हूँ,
कोई जिम्मेदारी नहीं, कोई जवाबदारी नहीं,
फिर भी उत्कृष्टता की कोशिश में हूँ।
कोई दिखती सीमारेखा नहीं, कोई थकान नहीं,
फिर भी सामाजिक हदों में हूँ,
कोई जोर नहीं, कोई लादी गई उम्मीदें नहीं,
फिर भी अपना वजूद बनाने की जद्दोजहद में हूँ,
अपना वजूद बनाने की जद्दोजहद में हूँ।।