दिमाग में अक्सर चलता रहता एक अंतर्द्वंद्व है ,
सच्चाई की कीमत बेहद मंद है,
चंचल मन में हो रही जंग है,
गैरों से दोस्ती, अपनों से बातचीत कम है,
नासमझ इंसान भीड़ में मस्त-मग्न है,
यारों कहीं तो कुछ गुम है।
जिस बंज़र जमीन पर कुछ नहीं,
वहां समस्याएं अनंत हैं,
चाहत कहीं और कदम कहीं ओर खोजते सुरंग हैं,
कागज़ी नोटों के आगे धर्म भी चुप है,
रूह की हिफाज़त की फिक्र नहीं,
देह लगती तबस्सुम है,
यारों कहीं तो कुछ गुम है।
धर्मगुरुओं का कोई वजूद नहीं,
सही राह दिखाने को कोई मौजूद नहीं,
खुद और खुदा के बीच सौदेबाजी जारी है,
मां की ममता बहू-बेटे के आगे ही हारी है,
ग़ज़लें सारी सुन्न हैं,
यारों कहीं तो कुछ गुम है।
कुरीतियों पर 'कलम' आज भी चोट कर रही है,
पर इंसानी-खोट दिन-ब-दिन बढ़ रही है,
पुरुस्कारों को लेकर माहोल गर्म है,
ये सब देखकर आज रूह बेहद बेचैन है,
यारों कहीं तो कुछ गुम है,
कहीं तो कुछ गुम है।
सच्चाई की कीमत बेहद मंद है,
चंचल मन में हो रही जंग है,
गैरों से दोस्ती, अपनों से बातचीत कम है,
नासमझ इंसान भीड़ में मस्त-मग्न है,
यारों कहीं तो कुछ गुम है।
जिस बंज़र जमीन पर कुछ नहीं,
वहां समस्याएं अनंत हैं,
चाहत कहीं और कदम कहीं ओर खोजते सुरंग हैं,
कागज़ी नोटों के आगे धर्म भी चुप है,
रूह की हिफाज़त की फिक्र नहीं,
देह लगती तबस्सुम है,
यारों कहीं तो कुछ गुम है।
धर्मगुरुओं का कोई वजूद नहीं,
सही राह दिखाने को कोई मौजूद नहीं,
खुद और खुदा के बीच सौदेबाजी जारी है,
मां की ममता बहू-बेटे के आगे ही हारी है,
ग़ज़लें सारी सुन्न हैं,
यारों कहीं तो कुछ गुम है।
कुरीतियों पर 'कलम' आज भी चोट कर रही है,
पर इंसानी-खोट दिन-ब-दिन बढ़ रही है,
पुरुस्कारों को लेकर माहोल गर्म है,
ये सब देखकर आज रूह बेहद बेचैन है,
यारों कहीं तो कुछ गुम है,
कहीं तो कुछ गुम है।