Monday, 3 July 2023

मां बाप की बढ़ती उम्र

मां बाप की बढ़ती उम्र
एक डर पैदा करती है।
एक ऐसा डर
जो बेजुबां है, बेतुका भी। 

डर लगता है कि
साथ छूट जाएगा
एक तेज हवा का झोंका आएगा
और जमीन से वृक्ष उखड़ जायेगा।

अनजान नहीं कि
मृत्यु ही सत्य है
पर शायद यह मोह और डर का चल रहा
शाश्वत नृत्य है।

अलसुबह हो यां देर रात
फोन की घंटी तनिक नहीं सुहाती है
ये मां बाप की बढ़ती उम्र
जाने क्यों भीतर ही भीतर सालती है।

No comments:

Post a Comment

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...