मां बाप की बढ़ती उम्र
एक डर पैदा करती है।
एक ऐसा डर
जो बेजुबां है, बेतुका भी।
डर लगता है कि
साथ छूट जाएगा
एक तेज हवा का झोंका आएगा
और जमीन से वृक्ष उखड़ जायेगा।
अनजान नहीं कि
मृत्यु ही सत्य है
पर शायद यह मोह और डर का चल रहा
शाश्वत नृत्य है।
अलसुबह हो यां देर रात
फोन की घंटी तनिक नहीं सुहाती है
ये मां बाप की बढ़ती उम्र
जाने क्यों भीतर ही भीतर सालती है।
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