Monday, 13 February 2023

मन की ही आराधना है

 शिव ने चुना गृहस्थ जीवन 

बुद्ध ने त्याग दिया 

परन्तु दोनों ही निर्विकार हुए 

क्योंकि अपने मन को आकार दिया। 


त्याग एक साध्य है 

गृहस्थ एक साधना है 

सब मन का खेल है 

मन की ही आराधना है। 


वरन मन की थाह बड़ी दुर्गम है, 

लोभ, मोह, माया का वृहत ये संगम है,

पर ढूंढने दें इसे अपना रास्ता 

इसे ना दें किसी का वास्ता। 

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...