Monday, 17 October 2016

दैनिक अख़बार

बेलगाम-सी इस दुनिया पर,
सरसरी नज़र दौड़ाती हूँ,
कहीं क्षण-भर न रुकूँ,
कहीं ठहर-सी जाती हूँ।
   
कभी सुकून-सा भाव जागता है,
कभी मन कचोट-सा जाता है,
कभी अजूबा-सा दिखाई देता है,
तो कभी हैवानियत का सिला नंगा हो झांकता है। 

कभी 'मन-ए-अपंग' का एहसास हो आता है,
कभी इस भीड़ में 'पाकीजा' होना 
जन्नत-सा महसूस कराता है,
कभी हाथों की उँगलियाँ दयावश चेहरे तक
आ पहुँचती हैं,
तो कभी वही उंगलियां मेज को दे ठोकती हैं। 

बेलगाम-सी इस दुनिया में,
हर किस्सा खबर होता  है,
गर दस-रूपए का कागज़ी नोट बाजार से खफा हो जाए,
तो कल वही मशहूर होता है,
अजी, जो आपके साथ होता है, वही मेरे साथ होता है,
आखिर मेरा दिन भी एक 'दैनिक अखबार' से शुरू होता है।।


Monday, 9 May 2016

Grand Paa

"82 year - old gentleman was admitted with chief complaints of Altered Sensorium associated with poor oral intake from last 4 days, for which his attendants brought him to our hospital for further management and needful." This one was followed by Patient's basic information, in the medical file of my grandfather and the only word which caught up my attention in this sentence is the 'Gentleman'. Yes, Gentleman. The man who has been remained gentle throughout his years of consciousness, how could he afforded to be violent in the last stage of his life. He is gentle for sure. He was silent. Even the process of egestion went on silently. Slowly, the reality of life was unveiled to me.                                                             Here, I am not about to write a posthumous praise, not even grief. The only thing which is putting my fingers on the keypad is 'regret' . Regret for a number of things. And, I ought to make it public.               
                    Generally, he called me up for a glass of water, for taking his plate after having meals, for evening tea, for knowing the time (he has a poor vision, sorry, 'had'), for medicine, for cutting his nails, for bathing, for general queries like 'dukan se aaye hain ki nahin?,' , 'Vinod {elder brother} ka phone aaya kya?' and many. These questions can be answered in a few words. But sometimes I became vexed at these regular questions. Don't know, why! Aisa nahin hai ki me samjhti nahin hu. I understand that elders and children need same treatment. I also believe in this quotation- 'As you sow, so shall you reap.' But......I have a deep regret.                           
                  Sometimes, I ignored his questions or didn't answer. And when he was taking his last breath, I just wished, he could speak to me one more time. I was ready to pay all my attention to him but he was in no mood to say a single word. I hoped God give me a second chance but Dada ke paas ab aur waqt nahin tha. He has passed away last night without asking me time, without calling me for a glass of water, without..........! Now, I am here to regret but he is no more.  

Friday, 22 April 2016

जद्दोजहद में हूँ

कोई जख्म नहीं, कोई घाव नहीं,
फिर भी मलहम की फ़िराक में हूँ,
कोई निंदक नहीं, कोई दुश्मन नहीं,
फिर भी एक कवच की तलाश में हूँ। 

कोई लेनदार नहीं, कोई देनदार नहीं,
फिर भी हिसाब रखने की आदत में हूँ,
कोई अधूरी ख्वाहिश नहीं,
कोई छोटी-सी भी फरमाइश नहीं,
फिर भी खुदा की इबादत में हूँ। 

कोई बेबसी नहीं, कोई दौड़-भाग नहीं,
फिर भी घड़ी-भर सुकून की चाह में हूँ,
कोई जिम्मेदारी नहीं, कोई जवाबदारी नहीं,
फिर भी उत्कृष्टता की कोशिश में हूँ। 

कोई दिखती सीमारेखा नहीं, कोई थकान नहीं,
फिर भी सामाजिक हदों में हूँ,
कोई जोर नहीं, कोई लादी गई उम्मीदें नहीं,
फिर भी अपना वजूद बनाने की जद्दोजहद में हूँ,
अपना वजूद बनाने की जद्दोजहद में हूँ।। 

Monday, 22 February 2016

माफ़ कीजिएगा

ट्रिंग-ट्रिंग की आवाज़ सुन,
मैंने उठाया फ़ोन,
हैलो के बाद पूछा-
'जी आप कौन?'
आवाज़ आई-
'राकेश है, राकेश?'
मैंने कहा-जी रॉंग नंबर है,
वो बोला- जी आप कौन हैं?
मैंने कहा जिस व्यक्ति से आप बात करना चाहते हैं,
वे यहाँ मौजूद नहीं हैं,
वो फिर बोल पड़ा,
'जी आप कौन बोल रही हैं?'
झुंझलाहट में मैंने रख दिया फ़ोन,
वो कहता ही रहा,
'जी आप कौन, जी आप कौन ?'

अब घरवालों की बारी थी,
इस रॉंग नंबर के बाद की तैयारी थी।
तीन सदस्य मौजूद थे घर में,
तीनों ने ही पूछा-'किसका फ़ोन था?',
मैंने कहा- 'रॉंग नंबर था',
पर जिज्ञासु मन कहाँ शांत बैठता,
बोले-'किसके लिए पूछ रहा था?',
मैंने कहा किसी राकेश के लिए फ़ोन था,
जवाब मिला- 'राकेश नहीं, नरेश कहा होगा',
उन तीन के आगे मैं हुई अल्पसंखयक,
कहा-'हो सकता है, मैंने गलत सुना होगा।'

इतने में ही फिर ट्रिंग-ट्रिंग बोल पड़ा,
मेरा मन अब जिद पर आ अड़ा,
नहीं उठाऊंगी फ़ोन,
साला, फिर पूछेगा कि आप कौन।
पर जिद को छोड़,उठाया फोन,
उन्हीं महाशय की आवाज़ आई,
कहने लगे- 'आप कौन?'

मैंने गुस्से में भी व्यवहार-कुशलता को बनाए रखा,
'तू' नहीं , 'आप' का ही दौर जारी रखा,
कहा- 'आपने लगाया है ना फोन,
और मैं बताऊँ आपको कि मैं हूँ कौन।'

वो शांतस्वर में बोला- 'मैडम मैं वही तो आपको बताना चाहता हूँ,
राकेश का मित्र हूँ, और उसी से बात करना चाहता हूँ',
मैंने क्रोधित हुए कहा-आप पृथ्वी से तो नहीं हो सकते,
आखिर किस ग्रह के प्राणी हैं,
जवाब मिला- जी हम सिर्फ और सिर्फ राकेश के सानी हैं।

मैं कुछ कहती ही कि वो खुशस्वर में बोल पड़ा,
'अरे अरे मैडम, राकेश तो यहीं आकर है खड़ा।'
मैंने कहा-जी बधाई हो आपको,
अब आगे से फ़ोन मत कीजिएगा,
वो बोला- मैडम वचन तो नहीं दे सकता,
'माफ़ कीजिएगा।'

Monday, 8 February 2016

भला, कौन है इस जहान में, जो कभी ना रोया है।

कुछ लफ्ज़ उतारने की कसक है,
हर पल मुस्कुराना भी एक अदब है।


ना जाने क्यूँ इंसान कहता है कि,
ज़िन्दगी में सिर्फ उसी ने खोया है,
भला, कौन है इस जहान में,
जो कभी ना रोया है।

कश्तियाँ डूब गईं,
मांझी देखता रहा,
लहरें बसाहटों से जा टकराईं,
बन्दा लाचार रहा,
फसलों को बूंदों की नज़र लग गई,
किसान कोसता रहा,
कुछ दिन कुछ न सूझा,
बस रुदन ही रुदन चलता रहा।

जबसे देखा आसपास,
तबसे समझ आया है,
जिसे ज़िन्दगी ने आजमाया,
उसपर ही खूब बरसाया है,
भला, कौन है इस जहान में,
जिसने सिर्फ खोया, न पाया है।। 

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...