रेलमपेल सी दुनिया में
ठहराव नहीं होता
बारिश के बूँद सा गुम जाए
दर्द इतना फौरी नहीं होता।
ये कुछ दिन मचलता है
कुछ दिन दहकता है
फिर जमकर बरसता है,
पर दोस्त
ये किस्सा बरस जाने पर ही खत्म नहीं होता,
क्यूंकि दर्द इतना फौरी नहीं होता।
शांत समुद्र सा दिखे कुछ दिन
फिर उद्वेलित सा
फिर थमा सा
और फिर रिसता रिसता
गहरी पैठ पा जाता है,
दरअसल दर्द जैसी शय का मुकाम
इतना सस्ता नहीं होता
दोस्त, दर्द फौरी नहीं होता।
जो तुम कहो कि
दर्द की समय सीमा
भी होनी चाहिए,
तो दोस्त
घड़ी का कांटा और दर्द
मित्रवत नहीं होता
और
गर तुम सोचो कि आंसुओं से
तर होकर बाहर निकल आओगे
तो जनाब फिर सुनो
दर्द इतना फौरी नहीं होता।