Tuesday, 21 May 2019

बेहद करीबी शय मीलों के सफर सी होती है।

जब कभी तुम्हें
ज़िन्दगी ज़िंदा ना लगे
तो एक पल ठहर इसे पढ़ना।

कुछ दिनों से तुम
बेहद अस्त व्यस्त हो,
आंसुओं को तरल पदार्थ
के मानिंद निगल
रहे हो,
यकीनन ये सबसे
सरल काम है,
बेहद सरल।

पर सच कहूं तो
ये महज खुद से खुद की
दूरी है।

दूरी.. जितनी ख़ामोश जुबां और
उगलती आंखों के मध्य है।
दूरी उतनी जितनी
मुसलसल गिरते आंसुओं
और अंखियों के कोनों
तक रेंगते आए पानी के बीच है।
हां,ठीक उतनी ही दूरी
जितनी सच्चे प्रेमियों के
रूठने और मान जाने के बीच है।

सिर्फ इतनी सी ही दूरी
तय करनी है तुम्हें,
पर जानती हूं कि ये आसान नहीं।

क्योंकि अक्सर बेहद करीबी शय
मीलों के सफर सी होती है।

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...