रात के अँधेरे का जिक्र छोड़िये,
दिन के उजाले की ओर रुख मोड़िए।
रात का अँधेरा तो बस यूँही बदनाम है,
उससे बड़े तो इस उजाले ने किए काम हैं।
मत कहिए कि उजाले में नारी महफूज़ रहेगी,
बल्कि सोचिए, दिन की भीड़ उसे कितना कुछ कहेगी।
बीत गई वो सदी, जब उजाला स्त्री का रक्षक था,
हज़ारों में से कोई एक ही भक्षक था,
पर अब इक्कीसवी सदी का दौर है,
कल की बातें अलग थीं, आज की बातें कुछ और हैं।
इस देश के कथित समझदारों ने
क्या गज़ब बनाया मखौल है,
जिस वक़्त नारी सबसे ज्यादा असुरक्षित है,
उसे ही कहा, 'महिला सशक्तिकरण' का दौर है,
'महिला सशक्तिकरण' का दौर है।