Wednesday, 31 December 2014

Alvida 2014

हँसते-रुठते, गिरते-संभलते,
पढ़ते-पढ़ाते, सोते-जगते,
2014 का अंत भी बेहद नजदीक आ गया,
आज जब किया साल-भर का हिसाब-किताब,
तब पता चला कि कितना लेन-देन हो गयाll
ट्रेन के अप-डाउन  की तरह ,
ज़िन्दगी में भी यही सब चलता रहा,
कभी बेहद अंधकार-सा नजर आया,
तो कभी उजाला-ही-उजाला बिखरा दिखाll
कुछ पा लिया, तो कुछ छूट गया,
कोई दिल के करीब रहा, तो कोई दूर हो गया,
खुद से उमीदें भी बढ़ी और आत्मविश्वास में इजाफा भी हुआ,
ऐसा नहीं है की ये साल मुझसे तनिक भी खफा रहाll
दोस्तों के साथ काफी गुदगुदाती यादें मिलीं,
कुछ कलियाँ टूट गईं, तो कुछ खिलीं,
मेरे अपनों का अपनापन बरक़रार रहा,
और किताबों से मेरा प्यार और गहरा हुआll
सोशल साइट्स ने कुछ पुराने तो कुछ नए दोस्तों से मिलाया,
ट्रेन के सुहाने सफर ने नए-पुराने चेहरों को दोस्त बनाया,
कहने को थोड़ा खोया, ज्यादा पाया,
2014 ने ज़िन्दगी के कईं रंगों से रूबरू करायाll
हर बार की तरह महसूस हो रहा है कि,
ये साल जल्दी गुजर गया,
यार अभी तो ये शुरू हुआ था, अभी खत्म हो गया,
पर असलियत में यह  हमें ज़िन्दगी के दस्तूर से वाकिफ करा गया,
जो शुरू हुआ है, उसका अंत पहले से ही है 'लिखा गया',
पहले से ही है 'लिखा गया'll

बदला है तुम्हारा मन क्या?

तारीख बदली है साल बदला है पर बदला है तुम्हारा मन क्या? है जश्न चारों ओर उमंग का न बूझे छोर पर क्या खोज पाए हो अपने मन की डोर? फैला है चहुँओर...